17/08/2019

रस्ते पर हैं आबादी, क्या करेंगे मोदीजी ?

पहली बार किसी प्रधानमंत्री ने जनसंख्या नियंत्रण कि बात की है;  वह भी लाल किले से स्वतंत्रता दिवस के मूहुर्त पर.  कश्मीर से कलम 370 हटाने बाद मोदी जी कि चौतरफा तारीफ हो रहीं है. यहां तक कि सर्जिकल स्ट्राईक का भी इतना स्वागत नहीं हुआ जितना इसका हो रहां है. लगता है लोगो के मन कि बात पुरी हो गयी है.
जनसंख्या का विस्फोट
यह ताकत किस काम की?
मोदी जी उनके पहले के निर्णयो में आयी असफलताओं के बाद अब पुरी फिल्डींग लगाकर काम को अंजाम दे रहें है. 70 साल पुरानी बिमारी का इलाज 370 को कलम करके हो गया है, यह धारणा ज्यादातर लोगो के मन में घर करके बैठ गयी है. भारतीय समाज खास करके हिन्दू काफी आंदोलित है. विरोध का स्वर काफी क्षीण है.
 इस सरकार ने पहले से हीं अपेक्षाएँ बढाकर रख दी है, तो लोगों के मन के घोड़े काफी तेजी से दौड़ने लगे हैं. अभी राम मंदिर कि बात हो हीं रहीं थी कि जनसंख्या नियंत्रण का विषय मोदी जी ने छेड़ दिया है.

इस विषय पर पहले से कई सामाजिक संस्थाये, बुद्धिजीवी समाज को जगाने का काम करते आ रहें है. लेकिन उनकी कोशिशों को अनेक मर्यादाएँ आती है. जनसंख्या नियंत्रण पर काम करने वाले एनजीओ को पैसा मिलता है लेकिन लोगों कां रिस्पॉन्स नहीं मिलता. बीच में एक संस्था कां नंबर व्हाट्स अप पर आया था कि आबादी पर लोग मशवरा दे. लेकिन इतना बडा विषय होकर भी लोगों कों उसमे इंटरेस्ट ही नहीं है. चार लोगो ने कुछ उपाय बताये होंगे. उससे बात आगे नहीं बढ़ती. जब कि इस एक विषय पर ध्यान दिया जाये तो देश कि किस्मत पलट सकती है. लेकिन यह आँसान काम नहीं है. इसकी तुलना में नोटबंदी, सर्जिकल स्ट्राईक जैसे निर्णय भी छोटे लगते है.

सरकारें कोई भी निर्णय ले एक वर्ग खुश होता है तो दुसरा नाराज. जनसंख्या नियंत्रण पर प्रत्यक्ष काम करना बडा मुश्किल है; क्योंकि सारा समाज नाराज हो सकता है. खास तौर पर गरीब. यहां अधिक बच्चे पैदा करना अधिकार और मर्दानगी से जोडा जाता है. सरकार ने कोई सख्ती दिखाई तो लोग बौखला जायेंगे. सरकार से नाराज हो जायेंगे. इसलिए बातें सभी सरकारें करती है, लेकिन कदम उठाने कि हिम्मत कोई दिखा नहीं पाता.
मोदी जी
मोदी जी ने कम-से-कम बात तो की है? मोदी जी काम तो करते है, साथ में कुछ फेकते भी रहते है. लोगों का मन टटोलने कां यह उनका तरीका है. अब देखिए जनसंख्या नियंत्रण पर मोदी जी बोले नहीं कि ओवेसी खडे हो गये. तीर सहीं लगा है.
कांग्रेस अभी कश्मीर पर बिझी है नहीं तो वे जरूर कुदते. अब हिंदू-मुस्लिम पर डीबेट चलता रहेगा, जो बीजेपी के लिए सबसे फायदे की बात है.
जनसंख्या नियंत्रण पर लोगो कां अनुभव अच्छा नहीं है. पिछली बार कांग्रेस के जमाने में लोगो कों पकड़ पकड़ के नसबंदी कराई गयी. कुछ लोगों ने चंद पैसे के लालच में नसबंदी करवाई थी. कुछ लोग पछताएँ और फिर विरोध हुआ तो सरकार ने कदम पीछे ले लिया.
लोग दरिद्रता में जीने को तैयार है लेकिन आबादी बढाने पर समझौता नहीं कर सकते. उसका सारा बोझ अंतिमत: सरकार पर याने कि करदाताओं पर टॅक्स बनकर पड़ता है. इस बढ़ती आबादी के कारण ही बेरोजगारी का प्रश्न विकराल रूप धारण कर चुका है. देश कि तिजोरी मे कितना भी धन आये, सारा लोगों कि प्राथमिक जरुरतों पर खर्चा हो जाता है. बचा सरकारी नोकर घर ले जाते है.

बाकी योजनाओ के लिए पैसा कम पड़ता है तो क्वालिटी से समझौता करना पड़ता है. वैज्ञानिक खोज पर पैसे के अभाव में 'जुगाड' कां असर दिखता है. फिर मोदी जी कों नाले के गॅस पर पकौड़े तलनेवाले को भी 'वाह' कहना पड़ता है. उपर से मोदी जी के ही लोग हिंदूओं को चार बच्चे पैदा करने कि सलाह देते है, तो लोग कन्फ्यूज हो जाते है.  प्रधानमंत्री कि सुने या धार्मिक नेताओं की सुनकर घरकी सदस्य संख्या बढ़ाए यह सवाल खड़ा हो जाता है. अच्छा हुआ कि बीजेपी की मातृसंस्था ने भी बढ़ती जनसंख्या पर चिंता जताई है. लेकिन उन्हीं से जुड़ी विश्व हिंदू परिषद हिंदुओं को चार बच्चे पैदा करने की सलाह देती आई है.एक ही बैठक में बैठने वाले लोग इस तरह से अलग अलग सलाह दे तो घोड़ा वहीं रुक जाता है. उससे इस विषय की गंभीरता खत्म हो जाती है.

मोदी जी कहते हैं भारत की युवा शक्ति राष्ट्र की संपत्ति है. यह शक्ति किस काम की? युवाओं का किस ढंग से उपयोग हो रहां है, उसे हम देख रहे हैं.एनआरसी, कॅब के मसले पर हजारों लोग रास्ते पर बैठ गए हैं. देश कां कामकाज ठप पड़ गया है. उसके पहले इन्हीं में से कुछ युवाओं ने तेज पर आगजनी की घटनाओं को अंजाम दिया. उसमे हजारों करोड़ के राष्ट्रीय संपत्ति कां नुकसान हुआ. ऐसी विध्वंसक आबादी किस काम की?
भारत की झोपड़पट्टीयां
आधा भारत झोपडपट्टीयो में बसा है.
लोग आबादी को ज्यादा गंभीरता से लेंगे ऐसा लगता नहीं. ऐसे विषय उनके दिल को छुते ही नही. लोगों को क्या चाहिए? रोजाना सनसनी! यहां अखबारों मे क्राईम पहले पन्ने पर होता है. जबतक रेप कि चार सवर्णन खबरे पढ नहीं लेते हमारा दिन अच्छे से नहीं कटता. इस देश कि दरिद्रता का बढ़ती आबादी यह एक प्रमुख कारण है. लेकिन ऐसे विषय को ना अखबार ना टीवी चैनल पूँछते है.

भारत में एवरग्रीन मुद्दा एक ही है. भारतवासी चाहे भूखे रह लेंगे, लेकिन हिंदू- मुस्लिम डीबेट नही देखे ऐसा हो नहीं सकता. वहीं भारत का राष्ट्रीय खाद्य है. इसीलिए किसी भी चुनाव में असली शराब के साथ 'हिन्दू-मुस्लिम' घुट्टी भी लोगो को पिलाई जाती है. उस नशे में वोटिंग होता है. पहले से हीं मन से बटे हुये हिन्दू-मुस्लिम और बट जाते है. कोई नई बात नहीं है. यह एक खेल है; जिसका कोई फायनल नहीं है.
 जब मोदी जी ने जनसंख्या नियंत्रण पर बात की उसके कुछ मिनट बाद ही ओवेसी ने विरोध का सूर लगा दिया. जैसे केवल मुस्लिमो कि आबादी रोखने कि बात मोदी जी ने कर दी हो. चलो, हिंदू- मुस्लिम वाला रंग तो लग गया. अब टीवी पर डीबेट चलेगा.
यह सरकार दो तरह से काम करती है. एक करने के काम और दुसरे कहने के काम. जनसंख्या नियंत्रण दुसरे कॅटेगिरी का कहने का काम है.
हर शहर कां यहीं हाल है.
जनसंख्या नियंत्रण महाकठीण काम तो है, लेकिन नाक में पानी आ रहां होगा तभी तो स्वतंत्रता दिवस पर मोदी जी को बात उठानी पड़ी है. जनसंख्या विस्फोट भविष्य कां नहीं आज का संकट है.डेढ सौ करोड़ के करीब हम आ चुके है.अभी तो लोग एक-दुसरे को सिर्फ लूट रहें है.बढती आबादी के कारण हीं सरकारें और समाज का सिस्टम दम तोड रहां है. आगे क्या होगा यह बात शिक्षित वर्ग अच्छे से सोच-समझ सकता है.

09/08/2019

मोदी सरकार की दे दनादन...


मोदी सरकार दनादन निर्णय ले रहीं है. यह स्टाईल लोगों को पसंद आ रहां है. उसी कारण लोगों ने उन्हें दोबारा चुनकर दिया है. शायद बीजेपी इम्लिमेंटेशन और रिझल्ट पर ज्यादा माथापच्ची नहीं करती है. तभी कुछ काम होता दिख भी रहां है. कम से कम लकवाग्रस्त कांग्रेस से तो यह स्टँड लोगों को अच्छा हीं लग रहां है. यह धक्का देनेवाली सरकार है.
इस के पहले कि विपक्ष संभल पाता अभी अभी जम्मू-कश्मीर से 370 हटाने का निर्णय झटके में हो गयां. अब अच्छा हुआ या बुरा इस पर सालों-साल डीबेट होती रहेगी; मोदी जी ने काम कर दिया है.
अभी भी जीएसटी, नोटबंदी के झटके से लोग उभरे नहीं है. मोदी जी ने एक दिन घोषणा कर दी.बाकी काम बँक और लोगोंपर छोड़कर वे आगे बढ गये.
ऐसे हीं एक दिन जीएसटी लागू हो गया. कुछ दिन व्यापारी और लोग पागल हो गये. अभी भी बदलाव हो रहे है. मोदी जी कों पता है, व्यापारी,प्रशासन और लोग आपस में देख लेंगे. नोटबंदी के बाद भी लोग शॉक में थे. हर निर्णय को ऐतिहासिक बताने कां इस सरकार कां तरीका है. तो किसी निर्णय से लोगों कि अपेक्षायें बढ जाती है. कुछ अच्छा होने वाला है, ऐसी आम धारणा बन जाती है. नोटबंदी से काला धन बाहर आयेगा, यह खयाल हीं कितना सुहाना है? तो कई लोगों ने घंटो धूँप में बँको के बाहर लाईन में लगकर मरना पसंद किया; लेकिन सरकार के निर्णय का स्वागत किया.
जीएसटी के पहले एक्स्पर्ट्स को टीव्ही पर बिठाकर उसके फायदे गिनवाये गये.टॅक्स कम होगा,चीजे कैसी सस्ती होगी,यह ख्वाब लोगों के मन में जगाया गया. लोग खुश हुये कि अब महंगाई कम होगी; लेकिन हमारा व्यापारी कभी घाटे में नही होता. टॅक्स को उन्होने कुबूल किया और सारे चीजों के दाम 25 से 40 परसेंट बढ़ा दिये. मोदी सरकार आगे बढ गयी है और लोग समझ नहीं पा रहें है कि चीजें कब सस्ती होगी. सामान्य आदमी को इस बात का आश्चर्य होता है कि मैं तो महंगाई के चटके झेल कहां हूँ, लेकिन महंगाई है हीं नहीं यह दर्शाने वाले आँकडे कौन बनाता है? यह आँकडे महंगाई को साफ नकार रहें है.
कश्मीर में शांती महसूस भी होनी चाहिए.
कलम 370 हट गया. इस के लिए बड़ी ईच्छाशक्ती चाहिये. हिंमत का काम है. अब कश्मिरीयों को जोड के रखने काम असली काम बाकी है. कांग्रेस के राज में क्या निर्णय होगा इसका अंदेसा लोगों को ही नहीं पाकिस्तान को भी हो जाता था. अब तो किसी को कुछ पता हीं नहीं चलता. मोदी जी क्या करेंगे यह ना लोगों को ना विपक्ष को पता होता है. बाद में सब रोते रहते है कि हमें विश्वास में नहीं लिया. मोदी जी सब को सिखा रहे कि विश्वास में लिया तो कोई बडा निर्णय नहीं हो पायेगा. तो इधर कांग्रेस परेशान रहती है और उधर पाकिस्तान.
अब कांग्रेस टेक्निकल की चक्की पीसकर कुछ निकालने की कोशिश कर रहीं है. उससे कोई फायदा नहीं होगा. उधर कश्मीर में पहलें ही सारे नेताओ तों अंदर कर दिया गया है.बाकी लोग घरों में कैद है. अभी विरोध होगा भी तों नहीं दिख रहां है. मोदी जी का अपना स्टाईल है- आगे जो होगा उसे देख लेंगे. लोगों को भा रहां है. इस बात में कोई दम नहीं है कि यह वोट बँक पॉलिटिक्स है. भारत में शायद हीं कोई काम वोट बँक पॉलिटिक्स को नजरअंदाज कर के किया जाता है. अगर 370 हटाने से हिंदू खुश होते है तो यह कलम अबतक 70 साल रखना मुस्लिमों को खुश रखने के लिए था, ऐसा अर्थ निकलता है. तो कम से कम कांग्रेस को मूँह नहीं बचा है कि वे इस सरकार पर वोट बँक पॉलिटिक्स का आरोप लगायें.
एक बात है- मोदी सरकार पर जब भी कोई संकट आता है तो वे रास्ता निकाल लेते है. अभी इकानामी के हालात खस्ता होने कि चर्चा चल हीं रहीं थी की मोदी जी ने 370 निकाल दिया. अब इकॉनामी 370 से बढकर थोडे ही है? जवाब धीमे आवाज में दिजिये; नहीं तो देशद्रोही करार दिये जावोगे.
अब असली सवाल पर आतें है.
समूह का मन होता है? पता नहीं; लेकिन ऐसा होता होगा तो कभी इस देश ने व्यापारीयों कां युग आने कि कामना जरूर की होगी.बीजेपी के सत्ता में आते हीं वह ईच्छा शायद फलीभूत हो गयी है. भारत के आर्थिक हालात कुछ भी हो, आखिरकार व्यापारीयों कों यह देश मनमुताबिक चलाने कां सौभाग्य प्राप्त हुआ है.
जब से मोदी जी प्रधानमंत्री बनें है, देश के व्यापारीयों के लिए सुवर्णयुग कां अवतरण हुआ है.वैसे भाजपा पहले से हीं व्यापारीयों की पार्टी कहलाती जाती रहीं है. आलोचकों कां यह नजरीया बदले इसके लिए पार्टी कोशिश भी करती रहती है.
देश के तरक्की के आँकडो में तो लगातार गिरावट आने कि बांत हो रहीं है, लेकिन ना सरकार पर कोई असर पडा है और ना हीं उद्योजकों को कोई फर्क पड़ता है. ऑटो,एफएमसीजी और लगभग सारे क्षेत्रों के आँकडे गिरावट दिखा रहें है. एक्स्पोर्ट के हालात खराब है. इम्पोर्ट हीं इम्पोर्ट है. जब के मोदी जी के कॅबिनेट में ज्यादातर नेता मूलत: व्यापारी हीं है. उन्हे लगातार दस साल देश चलाने का मौका मिल रहां है. लेकिन इकॉनामी पटरी पर आती दिख नहीं रहीं है.
कहां गया था कि जीएसटी,नोटबंदी से इकानामी दौड़ेगी. दिख तो नहीं रहां. बस सबके पास अपने समर्थन में आँकडे जरूर है; लेकिन उससे लोगों कों केवल भ्रमित किया जा सकता है. उस पर विश्लेषण करना एक्स्पर्ट्स काम है. अभी के सरकारी आँकडे तो गिरावट ही दिखा रहें हैं.
इकॉनामी कि समझ पाँच टका लोगों कों होगी. बाकी लोग इस विषय में लगभग अनपढ़ है. तो कांग्रेस अलग आँकडे दिखाती है तब लोगो कों लगता है कि देश डूब रहां है. बीजेपी कां सवाल हीं नहीं है. वह सत्ता में है तो कहीं कुछ गलत होनें कां सवाल हीं नहीं है. उनके पास जो आँकडे है उससे तो ऐसा लगता है कि जल्द हीं लोगों के घर पर सोने के स्लॅब होंगे! यह आँकडो का खेल सत्ता और विपक्ष में सालों-साल चलता रहता हैं. उसमे उलझना और मूर्ख बनने कि जिम्मेदारी आम आदमी पर है. यह भूमिका लोग इमानदारी से निभाते आ रहें है.
अब आगे क्या होगा? बहुत से सवाल अधर में लटके है. 370 से बीजेपी समर्थकों को भावनिक टॉनिक मिला है. यह मुद्दा मोदी जी की सत्ता रहते गुंजता रहेगा.
चर्चा हो रहीं है कि अब राम मंदिर पर कुछ होगा. हो जाये तो अच्छा है. देश में अनगिनत समस्यायें है. बेरोजगारी है. सरकारी बाबूओका करप्शन जैसे थे है. एनपीए फूल रहां है और सबसे ख़तरनाक बांत न्याय खतम हो गया है. छोटे-बड़े कोर्ट में करोड़ों केसेस पेंडिंग है. वहां ज्यादातर समझौते चोरों के हित में हो रहें है. भले ही कश्मीर ने बीजेपी को केंद्र में सत्ता दिलाई हो,लेकिन कब तक कश्मीर पर हीं फोकस रहेगा? देश की समस्याओं पर भी सरकार को ध्यान देना होगा. कब तक लोग भावनिक मुद्दों पर झुलते रहेंगे?