23/09/2019

मोदी जी विश्व गुरू बन चुके हैं...

अमेरिका के ह्युस्टन में मोदी जी ने समर्थकों को ऐसे झुककर अभिवादन किया.
आखिरकार भारत के लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने अमेरिका में अपना विश्वरूप दर्शन दिखा हीं दिया. उनका यह रूप देखकर 50 हजार से ज्यादा संख्या में वहां बैठे अमरिकी भारतीय भावविभोर हो गए. कईयों के आंखों से आंसू छलक आए. पूरी दुनिया के लोगों ने बगैर पलक झपकाए यह नजारा देखा. भारतीय लोगों के खुशी का तो ठिकाना नहीं था. बड़ा ही अद्भुत नजारा था.

 सच में मोदी जी खिलाडीयों के खिलाडी है. अभी अमेरिकी चुनाव होने को वक्त है, लेकिन विजय की रैली कैसी होती है उसकी झलक उन्होंने ट्रंप को अभी से हीं दिखा दी है. कोई बड़ा मैच जीतने के बाद जिस तरह से सारे खिलाड़ी ट्रॉफी लेकर स्टेडियम का चक्कर लगाते हैं, वैसे ही मोदी जी ने ट्रंप का हाथ कस कर पकड़ के चक्कर लगाया. मानो सारे विश्व पर विजयी परचम लहरा दिया हो. यह दृश्य देखकर सारी दुनिया ने दांतो तले उंगलियां दबा ली होगी. ऐसा लग नहीं रहा था कि अमरिका कां प्रेसिडेंट दुनिया का सबसे ताकतवर आदमी है. वह मोदी जी के पीछे घसीटे जा रहां था. मोदी जी की जय हो! विश्व गुरु जिंदाबाद!

विश्वगुरु मोदी जी संबोधित करते हुए.
  एक तरफ अमेरिका में मोदी जी के जयकारे लग रहे थे और दूसरी तरफ मोदी जी के फेल होने का इंतजार करते-करते थके हुए कांग्रेसी हाथ पर हाथ मल रहे थे. लेकिन उन्हें पता नहीं है कि हाथ पर हाथ मलने से और मुठ्ठिया पटकने से किसी का सत्यानाश नहीं होता. या तो संघर्ष करो या फिर दुश्मन से सीखो, यही रास्ता है. कांग्रेसी दोनों काम नहीं कर रहे हैं. सच में कांग्रेसियों को मोदी जी से कुछ सीखना चाहिए. भारत में कोई दो पैसे नहीं लगा रहा है. न्याय, पुलिस व्यवस्था खत्म हो चुकी है. गुंडे हीं अब न्याय कर रहे हैं. यही समझिए कि गुंडों की समांतर न्याय व्यवस्था चल रही है. न्याय के लिए लोग पुलिस की बजाय गुंडों पर विश्वास कर रहे हैं. सरकारी बाबुओं का भ्रष्टाचार चरम सीमा पर है. इसी से समझ लीजिए कि नोटबंदी के दौरान घोटालों में पकड़े गए बैंक कर्मचारियों पर क्या कार्रवाई हुई इसका कोई आंकड़ा आज तक सामने नहीं आया है. लेकिन मोदी जी की तरह सारे नेता कहते हैं- ना खाऊंगा ना खाने दूंगा! भ्रष्टाचार के बजाय जो विरोध में बात करेगा उसके प्रति जीरो टॉलरेंस दिख रहा है.

आरक्षण तो ऐसा विकराल रूप धारण कर चुका है कि न्यायाधीशों के दिमाग भी चकराने लगे हैं. सुप्रीम कोर्ट के जज भी रस्ते पर आकर न्याय की भीख मांग रहे हैं. अर्थव्यवस्था खड्डे में जा रही है; लेकिन हमारा देश विश्व गुरु बन गया है.चमत्कार है! पहली बार ऐसा हुआ है कि केवल नेता के भाषणों पर कोई देश ऊंचाइयों को छू रहां है.
मोदी जी ने ऐसे हाथ दिखाया तो तालियां गूंज उठी
वैसे भी यह आभासी युग है. भारत में तो सारा युवा वर्ग नेट से चिपका रहता हैं. यह तो अच्छी बात होनी चाहिए. लेकिन असलियत यह है कि इनका समय नॉलेज बटोरने की बजाए टाइमपास में गुजर रहा है. व्हाट्सएप, फेसबुक, ट्विटर पर यह युवक ज्यादातर भड़काऊ बातें या लैंगिक विषयों पर लिखते रहते हैं. ना उन्हें रोजगार का खयाल है ना अपने भविष्य की चिंता. बस आभासी दुनिया में जी रहें हैं.

ऊपर से कल 'हाउडी मोदी'के उपलक्ष में हमारे प्रधानमंत्री जी ने कह भी दिया कि भारत में सब ठीक चल रहा है. सबके मुंह बंद है. कांग्रेस मरी पड़ी है. बचा विपक्ष गालियां खा रहा है. पत्रकार लोगों की समस्याओं पर मौन साधे हुए हैं और सत्ता का गौरव गान कर रहे है. मतलब भारत में सब ठीक चल रहा है.

भारत मंदी के परिणामों को झेल रहां है. लोगों की क्रय शक्ति खत्म हो गई है. दूसरी तरफ प्रधानमंत्री जी के शब्दों में विकास की गंगा बह रही है. विश्व में किसी देश के साथ ऐसा पहली बार हो रहा है.
मोदी जी और ट्रंप ने साथ चलकर दोस्ती का परिचय दिया.
भारत में बैठा विपक्ष पिछले कुछ दिनों से मोदी जी के विश्व गुरु बनने के ख्वाब में अपशगुन कर रहां था. उनके छवि का मजाक बना रहां था.
 कांग्रेसी कहते हैं कि मोदी जी प्रधानमंत्री नहीं प्रचार मंत्री है. चौबीसों घंटे और बारह महीने चुनावी मोड में रहते हैं. सो तो सही है. मोदी जी तो पहले प्रचारक हीं थे. लेकिन कैनवस छोटा था. बस हिंदुत्व का प्रचार करते थे. लेकिन अब कैनवासिंग के लिए उन्हें दूसरे देशों से भी निमंत्रण आ रहे हैं. भाई तुम्हारी क्यों जल रही है? तुम क्यों ढंग का प्रचार नहीं करते? जिन्होंने पार्टी को डुबाया उनको भी तुम अभी तक बाजू हटा नहीं पाए.उलटे जेलों में जाकर उनके गले पड रहे हो. उसमें भी मोदी जी हीं मदद कर रहे हैं. कांग्रेस के एक एक नेता को जेल भेज रहे हैं. अब और क्या चाहिए? यह सफाई तो कांग्रेसियों को ही करनी थी. इतना ही नहीं भ्रष्टाचार में डूबे बचे-खुचे कांग्रेसियों को भी बीजेपी अपनी और खींचकर पवित्र-शुद्ध कर दे रहीं हैं. इस पॉलीटिकल स्वच्छ भारत अभियान का फायदा कांग्रेस को भी हो रहा है. अब कांग्रेस को क्या चाहिए? संघर्ष तो उन्हें नहीं करना है. राहुल-प्रियंका है तो संघर्ष एकदम फालतू बात है.
मोदी जी ने एक तीर में कई शिकार कर दिए है. भारत के चुनावो में लगातार प्रचार करके वे बोर हो गए होंगे. क्योंकि उनके सिवाय बीजेपी के एक आदमी का भी चुन कर आना मुश्किल है. चाहे वह लोकसभा के चुनाव हो या ग्राम पंचायत के, सब तरफ मोदी जी की डिमांड है. मोदी जी ने सही कहा, भारत में सब ठीक चल रहा हैं. लोगों के प्रॉब्लम खत्म हो गए हैं. क्योंकि छोटे से छोटा चुनाव भी लोकल प्रश्नों के बजाय मोदी जी की इमेज पर लड़ा जा रहा है. भारत देश कांग्रेस मुक्त होते होते समस्या मुक्त हो गया है. मोदी- मोदी के नारों ने सबके दिमाग को झकझोर के रख दिया है. कल का नजारा तो ऐसा था कि दुनिया में जहां भी भारतीय लोग बसे हैं वहां मोदी जी को प्रचार के लिए बुलाया जा सकता है. यह मोदी जी के सबसे पसंद का काम है. सारा विश्व मोदी जी को सैल्यूट ठोक रहा है. बड़े-बड़े लोग उनकी सभाओं में शिरकत करते हैं. बस विश्वास की कहां कमी है वह समझ में नहीं आ रहा है. भीड़ तो बहुत इकट्ठी हो रही है. लेकिन पैसा इकट्ठा नहीं हो रहा है. यह कैसी इमेज है हमारी, कि सारे विश्व में हमारा डंका बज रहा है लेकिन विश्वास कोई नहीं कर रहा है. हमारे माल को दुनिया के मार्केट में कोई कीमत नहीं है.भारत में कोई पैसा हीं नहीं लगा रहा है और जो पैसा कमा रहां है वह विदेशों में जाकर बसना चाह रहां है. बस इतनी ही दिक्कत है. बाकी विश्व गुरु तो हम बन हीं चुके हैं.
मोदी समर्थकों के खिले हुए चेहरे देखिए...


12/09/2019

सफेद हाथी बनकर रह गया 'ट्राई' !


तू है तो जीवन है
टीवी के बगैर जिंदगी मुश्किल है. रोटी, कपड़ा और मकान कां नंबर बाद में आता है. लगता है इनके बगैर हम जी लेंगे; लेकिन टीवी नहीं होगा तो हमारी सभ्यता कुपोषित होकर विलुप्त हो जायेगी!

मोदी सरकार के मूँह से निकला हर विचार, सोच एक संक्रामक बीमारी की तरह सबको जल्द हीं घेर लेता है. चाहे वह आम आदमी हो या ब्यूरोक्रेसी; सब उसके चपेट में आ जाता है. ब्यूरोक्रेसी सरकार के आदेशों को इंप्लीमेंट करती है. तो उसके कामकाज पर सरकार का असर दिखना बिल्कुल लाजमी है.

ऐसे ही सरकार से जुड़ी एक संस्था है 'ट्राई' याने टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण). इस ट्राई ने सबको परेशान करके रख दिया है. यह संस्था ग्राहकों पर ऐसे ऐसे प्रयोग कर रही है कि उसके कामकाज का तरीका अब आकलन के परे होता जा रहां है.
इस देश के आधे से ज्यादा टीवी दर्शक अर्ध शिक्षित और अशिक्षित है. यह जानते हुए भी ट्राई के सर्कुलर अंग्रेजी में निकलते रहते हैं. यह लोग इतने भी प्रोफेशनल नहीं है कि ग्राहकों को आसान भाषा में समझा सके.यह FTA मतलब फ्री टू एयर क्या है? इसके तो 154 रु.मंथली टैक्स समेत हर ग्राहक कों लग रहां हैं. फिर यह FTA कैसे हुआ? जिसके भरोसे कमाना है उसे तो यह बातें समझ में आनी चाहिए? जरूरी नहीं है कि इस फिल्ड के टेक्निकल टर्मस् और नये-नये शब्दों कों ग्राहक समझ सके. ग्राहकों में कन्फ्यूजन बने रहने का यह भी एक बड़ा कारण है. यह एक बिझनेस होकर भी ट्राई का व्यवहार बिलकुल 'सरकारी' है; जहां ग्राहकों कि कोई कीमत नहीं है.
ट्राई के मुखियां
 इतने में तो रोजाना सर्कुलर निकल रहे हैं. ट्राई नई नई योजनाएं लाकर ग्राहकों के प्रति चिंता का दिखावा कर रही है; पर वह योजनाएं ग्राहकों के समझ में आए तब ना?

पिछले दिनों में ट्राई ने ऐसे ऑर्डर छोड़े हैं कि उससे सामान्य ग्राहक और नेटवर्क प्रोवाइडर भी परेशान हो गए हैं. एक सिस्टम सेट होता नहीं कि ट्राई का नया सर्कुलर आ जाता है. इसमें नेटवर्क कंपनियों का कोई नुकसान नहीं होता. उन्हें अपने बिजनेस से मतलब है. पहले ही कंपनियों के सैकड़ों पैकेजेस उपलब्ध है. उसे ही लोग समझ नहीं पा रहे हैं और रोजाना नये पैकेजेस आते रहते हैं. ट्राई और नेटवर्क प्रोवाइडर्स ने लोगों को पागल करके रख दिया है. नुकसान सिर्फ आम ग्राहकों कां होता है. नेटवर्क कंपनियां सारा कन्फ्यूजन आम ग्राहकों पर डाल देती है और ग्राहक हमेशा लूटता रहता है.

कुछ साल पहले सेट टॉप बॉक्स कंपलसरी कर दिया गया. तब बॉक्स बनाने वाली कंपनियां और केबल चालकों की चांदी हो गई. आजकल कई घरों में अमूमन दो से लेकर पाँच तक टीवी होते हैं. उतने सेट टॉप बॉक्स लोगों को लगाने पड़े. लेकिन उनकी कीमत पर किसी का कोई नियंत्रण नहीं था. शुरुआत में तो प्रति सेट टॉप बॉक्स 4 हजार रुपए वसूले गए. अगर कोई ग्राहक सर्विस प्रोवाइडर बदल दे तो सेट टॉप बॉक्स और पैसा भी गया काम से. अभी भी ट्राई ने इस समस्या पर कोई रास्ता नहीं निकाला है.

वह कम ही था कि इस साल फरवरी में ट्राई ने नया सिस्टम लागू कर दिया. सरकार का इनकम बढे और केबल ऑपरेटर्स को लगाम लगे इस के लिए यह कवायद की गई. लेकिन यह सिस्टम कैसे चलेगा, इस पर कोई स्पष्टता नहीं थी. बस ट्राई ने सर्विस प्रोवाइडर पर थोप दिया और उन्होंने आम ग्राहकों को ठोक दिया.
त्रस्त लोग बस चिल्लाते रहते है...
कंपनियों के पास ग्राहकों को समझाने का वक्त नहीं था. उन्होंने हडबड में पैकेजेस बनाएं. ग्राहकों को कुछ समझ में नहीं आया. कई दिनों तक सर्विस प्रोवाइडर के ऑफिस में चक्कर काटकर लोग थक गए. बुजुर्ग लोग और महिलाओं के भी हाल हुये. टीवी बंद होने का डर दिखाया जा रहा था.

बताया जाता कि घर को जा कर अपने पसंद के चैनल्स की लिस्ट बना कर लाओ. लोगों ने रात रात आंखें फोड़ कर लिस्ट बनाई तो फिर उसे स्वीकारने से कंपनियों ने मना कर दिया. क्योंकि हर एक ग्राहक के पसंद के अनुसार लिस्ट बनाना कंपनियों के लिए संभव नहीं था. तो फिर उन्होंने उनके हिसाब से पैकेजेस बनाकर ग्राहकों के सामने रख दिए. उसमें से चुनाव करने के सिवाय लोगों के सामने पर्याय नहीं था. इस कवायद में बिल कम करने का ट्राई का वादा पूरा न हो सका. उलटे चैनल तो कम हो गए और बिल दुगने हो गए. इस चीटिंग की वजह से कई ग्राहकों ने अपने टीवी भी बंद कर दिए है.
तेरे बिन सुनी सुनी है राहें...
कुछ कंपनियां लोगों को नेट पर जाकर पैकेजेस चुनने की सलाह दे रहे थी. ग्रामीण इलाके में अभी भी जवान लड़के छोड़कर बाकी लोग इंटरनेट से उतने परिचित नहीं है. इससे जो कन्फ्यूजन फैला वह आज तक कायम है. उसका फायदा उठा कर कंपनियों ने सबको दुगने बिल के मैसेजेस भेजना शुरू कर दिया.

नया सिस्टम आते ही केबल चालक और ट्राई के बीच में झगड़े शुरू हो गए. यह मामला कोर्ट तक भी गया. आम आदमी के समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था.लेकिन ट्राई कि फेकम् फाक बातोंपर विश्वास रखकर लोक सहते रहें. बिल कम होने का इंतजार करते रहे. यह सब हो रहा था तभी लोकसभा चुनाव आ गए. लोग परेशान थे लेकिन राष्ट्रवाद कि ऐसी आंधी चली कि देशवासियों की असली समस्याएं उस सैलाब में बह गई.

बिल बढ़ गए और चैनल कम हो गए. टीवी ग्राहक रो ही रहे थे कि ट्राई के चेअरमन शर्मा जी ने स्टेटमेंट दे दिया कि 20 परसेंट ग्राहक को के बिल कम हो गए. यह जानकारी उन्होंने किस आधार पर दी थी इसका अभी तक पता नहीं चल पाया है. लोग परेशान होते रहे...

दरमियान सैकडो जागरूक लोगों ने ग्राहकों की समस्याओं से ट्राई को अवगत कराया. ट्राई का टेंशन बढ़ गया तो इतने में उन्होंने फिर एक सर्कुलर निकाला कि नेटवर्क सर्विस प्रोवाइडर्स के पैकेजेस कि समीक्षा होगी. लोगों के बिल कम करने पर विचार होगा. ऐसे ट्राई ने कहां ही था कि कंपनियां सतर्क हो गई. शायद उनके दबाव का ही परिणाम था कि दूसरे पल ही ट्राई अपने वादे से मुकर गई. बताया गया कि कोई बड़ा फेरबदल नहीं होगा अब फिर से ग्राहक सर पर हाथ देकर बैठे हैं.अच्छे दिन के इंतजार में...
ट्राई के ऐसे आर्डर आए दिन निकलते रहते हैं.
यह सरकार कुछ काम करती है और बहुत कुछ फेंकते रहती हैं. ट्राई के अधिकारियों पर सरकार के स्टाइल का कुछ ज्यादा हीं असर दिख रहा है. इस स्वतंत्र सरकारी संस्था का कोई ताल दिख नहीं रहां है. बेचारे भारतवासी केबल वालों की कृपा से जैसे तैसे 200-300 रु.में सारे चैनल देख रहे थे. तकलीफ केबल चालक भी दे रहे थे, लेकिन लोग निभा रहे थे. क्योंकि इतने पैसे में दुनिया भर के चैनल का आनंद मिल रहा था. ट्राई को लोगों की यह खुशी देखे नहीं गई. तरीका वही फेकम् फांक वाला था. नये पैकेज के अनुसार ग्राहकों का कैसा फायदा होगा, सस्ते में चैनल देखने को मिलेंगे, लोगों के पैसों की बचत होगी, जो देखोगे उसी का पैसा देना पड़ेगा, सबके बिल कम होंगे वगैरा-वगैरा बातें करके नई योजना लोगों के माथे पर मार दी गयी. अपना फायदा देख कर लोग भी राजी हुए. जनमानस काफी उत्साहित था लेकिन अब 7 महीने हो चुके हैं और लोग सर पीट रहे हैं. क्योंकि उनके बिल कम होने के बजाय काफी बढ़ गए हैं.

ऊपर से ट्राई के अधिकारी अलग-अलग स्टेटमेंट देकर लोगों को गुमराह करने का काम करते रहते हैं. शुरुआत में ही इस योजना की पोल खुल गई. रेवेन्यू बढ़ाने के लिए सरकार ने यह सब किया लेकिन पूर्व तैयारी ढंग से नहीं हुयी. जैसे नोटबंदी,जीएसटी लाते वक्त भी हुआ था.

जैसे ही लोगों की परेशानी बढ़ती है और वह कंप्लेंट करने लगते हैं उस वक्त ट्राई के अध्यक्ष बाहर आकर कोई नया शगुफा छोड़ देते हैं.और लोग अच्छे दिन आने के आस में लग जाते हैं.

लोगों कां किसी के कमाने को विरोध नहीं है; चाहे वह सरकार हो या उद्योजक. बस सिस्टमैटिकली कमाइए. करोड़ों ग्राहकों को बेवकूफ बनाकर नहीं, इतनी हीं अपेक्षा है. आखरी बात-लोगों को टीवी देखना है और उसके लिए वह खर्चा भी करने को तैयार है. लोग ढंग का रेगुलेशन चाहते हैं. यह जिम्मेदारी ट्राई को सौंपी गई है. उसे वह अच्छे से निभाए. रेगुलेटर कन्फ्यूजन बढ़ाने के लिए नहीं होता. ट्राई के लोग एक बार बैठ कर क्या करना है यह तय कर ले. बार-बार लोगों को परेशान ना करें. काम का दिखावा ना करें. ग्राहकों की समस्याओं को जल्द सुलझाएँ. दिखावे का सफेद हाथी ना बने. सात महीने बीत चुके हैं. कुछ तो करो साईं? सॉरी ट्राई...
अच्छे दिन की आस में मूंह मिठाई किजिए!




17/08/2019

रस्ते पर हैं आबादी, क्या करेंगे मोदीजी ?

पहली बार किसी प्रधानमंत्री ने जनसंख्या नियंत्रण कि बात की है;  वह भी लाल किले से स्वतंत्रता दिवस के मूहुर्त पर.  कश्मीर से कलम 370 हटाने बाद मोदी जी कि चौतरफा तारीफ हो रहीं है. यहां तक कि सर्जिकल स्ट्राईक का भी इतना स्वागत नहीं हुआ जितना इसका हो रहां है. लगता है लोगो के मन कि बात पुरी हो गयी है.
जनसंख्या का विस्फोट
यह ताकत किस काम की?
मोदी जी उनके पहले के निर्णयो में आयी असफलताओं के बाद अब पुरी फिल्डींग लगाकर काम को अंजाम दे रहें है. 70 साल पुरानी बिमारी का इलाज 370 को कलम करके हो गया है, यह धारणा ज्यादातर लोगो के मन में घर करके बैठ गयी है. भारतीय समाज खास करके हिन्दू काफी आंदोलित है. विरोध का स्वर काफी क्षीण है.
 इस सरकार ने पहले से हीं अपेक्षाएँ बढाकर रख दी है, तो लोगों के मन के घोड़े काफी तेजी से दौड़ने लगे हैं. अभी राम मंदिर कि बात हो हीं रहीं थी कि जनसंख्या नियंत्रण का विषय मोदी जी ने छेड़ दिया है.

इस विषय पर पहले से कई सामाजिक संस्थाये, बुद्धिजीवी समाज को जगाने का काम करते आ रहें है. लेकिन उनकी कोशिशों को अनेक मर्यादाएँ आती है. जनसंख्या नियंत्रण पर काम करने वाले एनजीओ को पैसा मिलता है लेकिन लोगों कां रिस्पॉन्स नहीं मिलता. बीच में एक संस्था कां नंबर व्हाट्स अप पर आया था कि आबादी पर लोग मशवरा दे. लेकिन इतना बडा विषय होकर भी लोगों कों उसमे इंटरेस्ट ही नहीं है. चार लोगो ने कुछ उपाय बताये होंगे. उससे बात आगे नहीं बढ़ती. जब कि इस एक विषय पर ध्यान दिया जाये तो देश कि किस्मत पलट सकती है. लेकिन यह आँसान काम नहीं है. इसकी तुलना में नोटबंदी, सर्जिकल स्ट्राईक जैसे निर्णय भी छोटे लगते है.

सरकारें कोई भी निर्णय ले एक वर्ग खुश होता है तो दुसरा नाराज. जनसंख्या नियंत्रण पर प्रत्यक्ष काम करना बडा मुश्किल है; क्योंकि सारा समाज नाराज हो सकता है. खास तौर पर गरीब. यहां अधिक बच्चे पैदा करना अधिकार और मर्दानगी से जोडा जाता है. सरकार ने कोई सख्ती दिखाई तो लोग बौखला जायेंगे. सरकार से नाराज हो जायेंगे. इसलिए बातें सभी सरकारें करती है, लेकिन कदम उठाने कि हिम्मत कोई दिखा नहीं पाता.
मोदी जी
मोदी जी ने कम-से-कम बात तो की है? मोदी जी काम तो करते है, साथ में कुछ फेकते भी रहते है. लोगों का मन टटोलने कां यह उनका तरीका है. अब देखिए जनसंख्या नियंत्रण पर मोदी जी बोले नहीं कि ओवेसी खडे हो गये. तीर सहीं लगा है.
कांग्रेस अभी कश्मीर पर बिझी है नहीं तो वे जरूर कुदते. अब हिंदू-मुस्लिम पर डीबेट चलता रहेगा, जो बीजेपी के लिए सबसे फायदे की बात है.
जनसंख्या नियंत्रण पर लोगो कां अनुभव अच्छा नहीं है. पिछली बार कांग्रेस के जमाने में लोगो कों पकड़ पकड़ के नसबंदी कराई गयी. कुछ लोगों ने चंद पैसे के लालच में नसबंदी करवाई थी. कुछ लोग पछताएँ और फिर विरोध हुआ तो सरकार ने कदम पीछे ले लिया.
लोग दरिद्रता में जीने को तैयार है लेकिन आबादी बढाने पर समझौता नहीं कर सकते. उसका सारा बोझ अंतिमत: सरकार पर याने कि करदाताओं पर टॅक्स बनकर पड़ता है. इस बढ़ती आबादी के कारण ही बेरोजगारी का प्रश्न विकराल रूप धारण कर चुका है. देश कि तिजोरी मे कितना भी धन आये, सारा लोगों कि प्राथमिक जरुरतों पर खर्चा हो जाता है. बचा सरकारी नोकर घर ले जाते है.

बाकी योजनाओ के लिए पैसा कम पड़ता है तो क्वालिटी से समझौता करना पड़ता है. वैज्ञानिक खोज पर पैसे के अभाव में 'जुगाड' कां असर दिखता है. फिर मोदी जी कों नाले के गॅस पर पकौड़े तलनेवाले को भी 'वाह' कहना पड़ता है. उपर से मोदी जी के ही लोग हिंदूओं को चार बच्चे पैदा करने कि सलाह देते है, तो लोग कन्फ्यूज हो जाते है.  प्रधानमंत्री कि सुने या धार्मिक नेताओं की सुनकर घरकी सदस्य संख्या बढ़ाए यह सवाल खड़ा हो जाता है. अच्छा हुआ कि बीजेपी की मातृसंस्था ने भी बढ़ती जनसंख्या पर चिंता जताई है. लेकिन उन्हीं से जुड़ी विश्व हिंदू परिषद हिंदुओं को चार बच्चे पैदा करने की सलाह देती आई है.एक ही बैठक में बैठने वाले लोग इस तरह से अलग अलग सलाह दे तो घोड़ा वहीं रुक जाता है. उससे इस विषय की गंभीरता खत्म हो जाती है.

मोदी जी कहते हैं भारत की युवा शक्ति राष्ट्र की संपत्ति है. यह शक्ति किस काम की? युवाओं का किस ढंग से उपयोग हो रहां है, उसे हम देख रहे हैं.एनआरसी, कॅब के मसले पर हजारों लोग रास्ते पर बैठ गए हैं. देश कां कामकाज ठप पड़ गया है. उसके पहले इन्हीं में से कुछ युवाओं ने तेज पर आगजनी की घटनाओं को अंजाम दिया. उसमे हजारों करोड़ के राष्ट्रीय संपत्ति कां नुकसान हुआ. ऐसी विध्वंसक आबादी किस काम की?
भारत की झोपड़पट्टीयां
आधा भारत झोपडपट्टीयो में बसा है.
लोग आबादी को ज्यादा गंभीरता से लेंगे ऐसा लगता नहीं. ऐसे विषय उनके दिल को छुते ही नही. लोगों को क्या चाहिए? रोजाना सनसनी! यहां अखबारों मे क्राईम पहले पन्ने पर होता है. जबतक रेप कि चार सवर्णन खबरे पढ नहीं लेते हमारा दिन अच्छे से नहीं कटता. इस देश कि दरिद्रता का बढ़ती आबादी यह एक प्रमुख कारण है. लेकिन ऐसे विषय को ना अखबार ना टीवी चैनल पूँछते है.

भारत में एवरग्रीन मुद्दा एक ही है. भारतवासी चाहे भूखे रह लेंगे, लेकिन हिंदू- मुस्लिम डीबेट नही देखे ऐसा हो नहीं सकता. वहीं भारत का राष्ट्रीय खाद्य है. इसीलिए किसी भी चुनाव में असली शराब के साथ 'हिन्दू-मुस्लिम' घुट्टी भी लोगो को पिलाई जाती है. उस नशे में वोटिंग होता है. पहले से हीं मन से बटे हुये हिन्दू-मुस्लिम और बट जाते है. कोई नई बात नहीं है. यह एक खेल है; जिसका कोई फायनल नहीं है.
 जब मोदी जी ने जनसंख्या नियंत्रण पर बात की उसके कुछ मिनट बाद ही ओवेसी ने विरोध का सूर लगा दिया. जैसे केवल मुस्लिमो कि आबादी रोखने कि बात मोदी जी ने कर दी हो. चलो, हिंदू- मुस्लिम वाला रंग तो लग गया. अब टीवी पर डीबेट चलेगा.
यह सरकार दो तरह से काम करती है. एक करने के काम और दुसरे कहने के काम. जनसंख्या नियंत्रण दुसरे कॅटेगिरी का कहने का काम है.
हर शहर कां यहीं हाल है.
जनसंख्या नियंत्रण महाकठीण काम तो है, लेकिन नाक में पानी आ रहां होगा तभी तो स्वतंत्रता दिवस पर मोदी जी को बात उठानी पड़ी है. जनसंख्या विस्फोट भविष्य कां नहीं आज का संकट है.डेढ सौ करोड़ के करीब हम आ चुके है.अभी तो लोग एक-दुसरे को सिर्फ लूट रहें है.बढती आबादी के कारण हीं सरकारें और समाज का सिस्टम दम तोड रहां है. आगे क्या होगा यह बात शिक्षित वर्ग अच्छे से सोच-समझ सकता है.

09/08/2019

मोदी सरकार की दे दनादन...


मोदी सरकार दनादन निर्णय ले रहीं है. यह स्टाईल लोगों को पसंद आ रहां है. उसी कारण लोगों ने उन्हें दोबारा चुनकर दिया है. शायद बीजेपी इम्लिमेंटेशन और रिझल्ट पर ज्यादा माथापच्ची नहीं करती है. तभी कुछ काम होता दिख भी रहां है. कम से कम लकवाग्रस्त कांग्रेस से तो यह स्टँड लोगों को अच्छा हीं लग रहां है. यह धक्का देनेवाली सरकार है.
इस के पहले कि विपक्ष संभल पाता अभी अभी जम्मू-कश्मीर से 370 हटाने का निर्णय झटके में हो गयां. अब अच्छा हुआ या बुरा इस पर सालों-साल डीबेट होती रहेगी; मोदी जी ने काम कर दिया है.
अभी भी जीएसटी, नोटबंदी के झटके से लोग उभरे नहीं है. मोदी जी ने एक दिन घोषणा कर दी.बाकी काम बँक और लोगोंपर छोड़कर वे आगे बढ गये.
ऐसे हीं एक दिन जीएसटी लागू हो गया. कुछ दिन व्यापारी और लोग पागल हो गये. अभी भी बदलाव हो रहे है. मोदी जी कों पता है, व्यापारी,प्रशासन और लोग आपस में देख लेंगे. नोटबंदी के बाद भी लोग शॉक में थे. हर निर्णय को ऐतिहासिक बताने कां इस सरकार कां तरीका है. तो किसी निर्णय से लोगों कि अपेक्षायें बढ जाती है. कुछ अच्छा होने वाला है, ऐसी आम धारणा बन जाती है. नोटबंदी से काला धन बाहर आयेगा, यह खयाल हीं कितना सुहाना है? तो कई लोगों ने घंटो धूँप में बँको के बाहर लाईन में लगकर मरना पसंद किया; लेकिन सरकार के निर्णय का स्वागत किया.
जीएसटी के पहले एक्स्पर्ट्स को टीव्ही पर बिठाकर उसके फायदे गिनवाये गये.टॅक्स कम होगा,चीजे कैसी सस्ती होगी,यह ख्वाब लोगों के मन में जगाया गया. लोग खुश हुये कि अब महंगाई कम होगी; लेकिन हमारा व्यापारी कभी घाटे में नही होता. टॅक्स को उन्होने कुबूल किया और सारे चीजों के दाम 25 से 40 परसेंट बढ़ा दिये. मोदी सरकार आगे बढ गयी है और लोग समझ नहीं पा रहें है कि चीजें कब सस्ती होगी. सामान्य आदमी को इस बात का आश्चर्य होता है कि मैं तो महंगाई के चटके झेल कहां हूँ, लेकिन महंगाई है हीं नहीं यह दर्शाने वाले आँकडे कौन बनाता है? यह आँकडे महंगाई को साफ नकार रहें है.
कश्मीर में शांती महसूस भी होनी चाहिए.
कलम 370 हट गया. इस के लिए बड़ी ईच्छाशक्ती चाहिये. हिंमत का काम है. अब कश्मिरीयों को जोड के रखने काम असली काम बाकी है. कांग्रेस के राज में क्या निर्णय होगा इसका अंदेसा लोगों को ही नहीं पाकिस्तान को भी हो जाता था. अब तो किसी को कुछ पता हीं नहीं चलता. मोदी जी क्या करेंगे यह ना लोगों को ना विपक्ष को पता होता है. बाद में सब रोते रहते है कि हमें विश्वास में नहीं लिया. मोदी जी सब को सिखा रहे कि विश्वास में लिया तो कोई बडा निर्णय नहीं हो पायेगा. तो इधर कांग्रेस परेशान रहती है और उधर पाकिस्तान.
अब कांग्रेस टेक्निकल की चक्की पीसकर कुछ निकालने की कोशिश कर रहीं है. उससे कोई फायदा नहीं होगा. उधर कश्मीर में पहलें ही सारे नेताओ तों अंदर कर दिया गया है.बाकी लोग घरों में कैद है. अभी विरोध होगा भी तों नहीं दिख रहां है. मोदी जी का अपना स्टाईल है- आगे जो होगा उसे देख लेंगे. लोगों को भा रहां है. इस बात में कोई दम नहीं है कि यह वोट बँक पॉलिटिक्स है. भारत में शायद हीं कोई काम वोट बँक पॉलिटिक्स को नजरअंदाज कर के किया जाता है. अगर 370 हटाने से हिंदू खुश होते है तो यह कलम अबतक 70 साल रखना मुस्लिमों को खुश रखने के लिए था, ऐसा अर्थ निकलता है. तो कम से कम कांग्रेस को मूँह नहीं बचा है कि वे इस सरकार पर वोट बँक पॉलिटिक्स का आरोप लगायें.
एक बात है- मोदी सरकार पर जब भी कोई संकट आता है तो वे रास्ता निकाल लेते है. अभी इकानामी के हालात खस्ता होने कि चर्चा चल हीं रहीं थी की मोदी जी ने 370 निकाल दिया. अब इकॉनामी 370 से बढकर थोडे ही है? जवाब धीमे आवाज में दिजिये; नहीं तो देशद्रोही करार दिये जावोगे.
अब असली सवाल पर आतें है.
समूह का मन होता है? पता नहीं; लेकिन ऐसा होता होगा तो कभी इस देश ने व्यापारीयों कां युग आने कि कामना जरूर की होगी.बीजेपी के सत्ता में आते हीं वह ईच्छा शायद फलीभूत हो गयी है. भारत के आर्थिक हालात कुछ भी हो, आखिरकार व्यापारीयों कों यह देश मनमुताबिक चलाने कां सौभाग्य प्राप्त हुआ है.
जब से मोदी जी प्रधानमंत्री बनें है, देश के व्यापारीयों के लिए सुवर्णयुग कां अवतरण हुआ है.वैसे भाजपा पहले से हीं व्यापारीयों की पार्टी कहलाती जाती रहीं है. आलोचकों कां यह नजरीया बदले इसके लिए पार्टी कोशिश भी करती रहती है.
देश के तरक्की के आँकडो में तो लगातार गिरावट आने कि बांत हो रहीं है, लेकिन ना सरकार पर कोई असर पडा है और ना हीं उद्योजकों को कोई फर्क पड़ता है. ऑटो,एफएमसीजी और लगभग सारे क्षेत्रों के आँकडे गिरावट दिखा रहें है. एक्स्पोर्ट के हालात खराब है. इम्पोर्ट हीं इम्पोर्ट है. जब के मोदी जी के कॅबिनेट में ज्यादातर नेता मूलत: व्यापारी हीं है. उन्हे लगातार दस साल देश चलाने का मौका मिल रहां है. लेकिन इकॉनामी पटरी पर आती दिख नहीं रहीं है.
कहां गया था कि जीएसटी,नोटबंदी से इकानामी दौड़ेगी. दिख तो नहीं रहां. बस सबके पास अपने समर्थन में आँकडे जरूर है; लेकिन उससे लोगों कों केवल भ्रमित किया जा सकता है. उस पर विश्लेषण करना एक्स्पर्ट्स काम है. अभी के सरकारी आँकडे तो गिरावट ही दिखा रहें हैं.
इकॉनामी कि समझ पाँच टका लोगों कों होगी. बाकी लोग इस विषय में लगभग अनपढ़ है. तो कांग्रेस अलग आँकडे दिखाती है तब लोगो कों लगता है कि देश डूब रहां है. बीजेपी कां सवाल हीं नहीं है. वह सत्ता में है तो कहीं कुछ गलत होनें कां सवाल हीं नहीं है. उनके पास जो आँकडे है उससे तो ऐसा लगता है कि जल्द हीं लोगों के घर पर सोने के स्लॅब होंगे! यह आँकडो का खेल सत्ता और विपक्ष में सालों-साल चलता रहता हैं. उसमे उलझना और मूर्ख बनने कि जिम्मेदारी आम आदमी पर है. यह भूमिका लोग इमानदारी से निभाते आ रहें है.
अब आगे क्या होगा? बहुत से सवाल अधर में लटके है. 370 से बीजेपी समर्थकों को भावनिक टॉनिक मिला है. यह मुद्दा मोदी जी की सत्ता रहते गुंजता रहेगा.
चर्चा हो रहीं है कि अब राम मंदिर पर कुछ होगा. हो जाये तो अच्छा है. देश में अनगिनत समस्यायें है. बेरोजगारी है. सरकारी बाबूओका करप्शन जैसे थे है. एनपीए फूल रहां है और सबसे ख़तरनाक बांत न्याय खतम हो गया है. छोटे-बड़े कोर्ट में करोड़ों केसेस पेंडिंग है. वहां ज्यादातर समझौते चोरों के हित में हो रहें है. भले ही कश्मीर ने बीजेपी को केंद्र में सत्ता दिलाई हो,लेकिन कब तक कश्मीर पर हीं फोकस रहेगा? देश की समस्याओं पर भी सरकार को ध्यान देना होगा. कब तक लोग भावनिक मुद्दों पर झुलते रहेंगे?

12/07/2019

धोनी नाम कां शेर अब बुड्ढा हो रहां है..


महेंद्र सिंग धोनी विश्व स्तर के महान क्रिकेटर है. भारत के सबसे यशस्वी कप्तान रहें है. आज भी मैदान पर आधी कप्तानी तो वहीं करते दिखाई देते है. टीम कों उनकी जरुरत महसूस हो, ऐसा खेल कप्तानी, बॅटिंग और लाजवाब विकेट किपिंग से वह दिखातें रहें है. लेकिन जिस कारण से वे दुनिया में जाने जाते रहें है, वह 'फिनिशर' वाला तमगा अब उन्हें अब शोभा नहीं देता.
एक समय था जब धोनी मैदान में होतें तब तक जीत का विश्वास जिंदा
रहता था. वह भरोसा अब मॅच दर मॅच टूँट रहाँ है. धोनी अब उस श्रेणी में आ गये है, जहां एक महान खिलाडी बोझ बन जाता है.
इंग्लैंड से हारने के बाद धोनी के धीमे खेल को जिम्मेदार ठहराया गया. उनकी जमकर आलोचना हुई. उसी दरम्यान, वर्ल्ड कप के बाद उनके रिटायरमेंट की न्यूज जान बूझकर फैलाई गयी. खबर फैलाने वाले उनके दुश्मन रहें होंगे ऐसा लगता नहीं. धोनी सेमी फायनल और फायनल में धमाकेदार खेल दिखायें और भारत को कप दिलायें यहीं उद्देश उस खबर के पीछे रहां होगा. धोनी ने भागीदारी तो अच्छी निभाई लेकिन धीमे खेलने की उनकी बिमारी अब आगे भी क्युअर होने वाली नहीं है, यह संकेत फिर से दे दिये.

न्यूझिलंड के मॅच में भी वही हुआ.वे आखिर तक धीमा खेलते रहे. और ऐन मोकेपर उनका रन आऊट होना चमत्कार से कम नहीं था. भारतीय खिलाडियों को रनिंग बिटविन अपने उदाहरण से सिखानेवाला खूद रनआऊट हो गया. भारत की उम्मीदों पर पानी फेर गया. शेर अब बुड्ढा हो गया है, इसके यह संकेत दिखते है
पीछले कुछ वर्षो से उनका खेल ऐसा ही रहां है. अगर जीतने के लिये पाँच का रनरेट चाहिये तो वह रेट दस-बारह तक चला जाता है; लेकिन धोनी रिस्क नहीं उठाते. जब मॅच हाथ से निकल जाता है तब 49-50 वे ओवर में वे चौके-छक्के लगाते है. जिससे उनका स्थान तो टीम में बना रहता है लेकिन भारत हार जाता है. धोनी साथी को खेलने का ज्यादा मोका देते है यह बात सहीं है. लेकिन वह खूद सेट होकर भी रिस्क नहीं लेते. उसका दबाव दुसरे खिलाडी पर बनता है. रनरेट के दबाव में वे आऊट होते जाते है.
एक महान खिलाडी जो अभी भारतीय टीम के साथ है, रवी शास्त्री में भी धोनी की तरह सारी प्रतिभायें थी. शास्त्री के पास भी दो ही गीयर थे. वे भी बॅटिंग में रुद्रावतार धारण करने की क्षमता रखते थे लेकिन ज्यादातर इतनी धीमी पारियां खेलते कि भारत को हराकर ही दम लेते थे. उस जमाने में 150-180 का स्कोर बडा माना जाता था. लेकिन भारत तीन के रनरेट को भी हासिल नही कर पाता था. बाद में शास्त्री आते और मेडन पर मेडन ओवर निकालते. मानो कमजोर बॉल पर भी चौका मारते तो प्रलय आ जाता.धीमे खेल के कारण तीन का आस्किंग रनरेट 7-8 तक चला जाता और शास्त्री आऊट हो जाते. उस बोझ तले दबकर बचे खिलाडी हाराकिरी कर लेते. भारत हारता रहता. धोनी को वैसे ही खेलते देखकर शास्त्री को अपने दिन जरूर याद आते होंगे. इसमें कौन गुरू है यह तय करना मुश्किल है.
धोनी के लिये अधिक दुख होता है. क्यों की उन्होने भारत को जीतना सिखाया है. अब हरानेवाला धोनी ऐसा ब्लेम लगने के पहले उन्होंने वन डे क्रिकेट छोड़ देनी चाहियें. वैसे उनपर बेरोजगारी का वक्त तो बिलकुल भी आनेवाला नहीं है. आयपीएल वाले तो उन्हे मूँहमांगी किमत हर साल देते ही है. आगे भी देते रहेंगे. बीसीसीआई को भी उनकी चिंता है. किसी स्टँड को उनका नाम मिलना तो पक्का लगता है.
धोनी के खेल में वैसे कोई खोट नहीं है. वह खेल सकते है. लेकिन अब यह फार्मेट उनके काम का नहीं रहां है. असल में उन्हे उमर के लिहाज सें आ रही मर्यादाओं को ध्यान में रखकर 20-20 और वन डे फाॅर्मेट को छोड़ना चाहिये था. लेकिन बात उलटी हो गई है. उन्होनें टेस्ट क्रिकेट छोड़ दिया. इसी टेस्ट फाॅर्मेट के लिये वह आज भी ठीक है और बीसीसीआई उन्हे उमर के पचास साल तक भी 'खिला' सकती है. कोई दिक्कत नही है. धोनी का ब्रांड नेम अगले दस साल तक भी चल सकता है.
भारतीय क्रिकेट के लियें धोनी का योगदान अतुलनीय है. जहां हार ही हमारी किस्मत थी और टीम में स्थान बनायें रखना ही पुरुषार्थ था; ऐसे में एक छोटे शहर का युवा आता है खुद के बल पर चमत्कारिक खेल का प्रदर्शन करके एक से एक जीत दिलाता है. मरे हुये और केवल दांवपेंचों का अखाड़ा बने हुये भारतीय क्रिकेट कों उसने कप पर कप जितवाकर गौरव दिलवाया.आत्मविश्वास गवाँ चुकें टीम में जान फूँक दी. कई सिरीज़ जितवाई. विश्व कीं बड़ीं टीमों को कई बार पटखनी दी.
हार को आदत बना चुके भारतीय क्रिकेट को जीत की आदत दिलाने का श्रेय किसी खिलाड़ी को जाता है तो केवल धोनी ही है. लेकिन अब वक्त आ गया है किसी दुसरे को आगे लाने का. कोई महान खिलाडी खूद होकर टीम से बाहर होना नही चाहेगा. लेकिन कहाँ रुकना है इसका निर्णय-समय खिलाडी खूद तय कर ले तो उसके प्रतिष्ठा में चार चाँद लग जातें है. नहीं तो उसकी अवस्था दयनीय होने की संभावना ज्यादा होती है.
मॅनेजमेंट महान खिलाडी के नाते उसको टीम से निकाल नहीं सकती. तो उसको ढोना पडता है. यह क्रिकेट के लिये ठीक बात नहीं है. गावस्कर, कपिल, सचिन जैसे खिलाड़ीयों ने अपने खेल से करोड़ों क्रिकेट प्रेमीयों के मन पर कई साल राज किया. लेकिन वे भी रुकने का निर्णय नहीं ले पायें. खिलाडी की उमर चाहे कितनी भी हो जाये, फाॅर्म वापस आने की आस उसको लगी रहती है. आखिर उनको कई हथकंडे अपनाकर मॅनेजमेंट ने दूर किया. ऐसे महान खिलाडी टीम से बाहर गये तो भारत का क्रिकेट रुक थोडे ही गया? धोनी मिल ही गया. अब धोनी की भी बारी है. धोनी रास्ता खोल दो! पीछे कई खिलाडी धक्के मार रहें है.